Sunday, July 17, 2011

यमराज का इस्तीफा


एक दिन यमदेव ने दे दिया अपना इस्तीफा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब संतुलन,
करने के लिए स्थिति का आकलन,
इन्द्र देव ने देवताओं की आपात सभा बुलाई
और फिर यमराज को कॉल लगाई।

'डायल किया गया नंबर कृपया जाँच लें'
कि आवाज तब सुनाई।

नये-नये ऑफ़र देखकर नम्बर बदलने की
यमराज की इस आदत पर इन्द्रदेव को खुन्दक आई,

पर मामले की नाजुकता को देखकर,
मन की बात उन्होने मन में ही दबाई।
किसी तरह यमराज का नया नंबर मिला,
फिर से फोन 
लगाया गया तो
'तुझसे है मेरा नाता पुराना कोई' का
मोबाईल ने कॉलर टयून सुनाया। 


सुन-सुन कर ये सब बोर हो गये
ऐसा लगा शायद यमराज जी सो गये।

तहकीकात करने पर पता लगा,
यमदेव पृथ्वीलोक में रोमिंग पे हैं,
शायद इसलिए, नहीं दे रहे हैं
हमारी कॉल पे ध्यान, क्योंकि बिल भरने
में निकल जाती है उनकी भी जान।

अन्त में किसी तरह यमराज हुये इन्द्र के दरबार में पेश,
इन्द्रदेव ने तब पूछा-यमक्या है ये इस्तीफे का केस?

यमराज जी तब मुँह खोले और बोले-

हे इंद्रदेव। 'मल्टीप्लैक्स' में जब भी जाता हूँ,
'भैंसे' की पार्किंग न होने की वजह सेबिन फिल्म देखे,ही लौट के आता हूँ। 

'बरिस्ता' और 'मैकडोन्लड' वाले तो देखते ही देखते इज्जत उतार देते हैं और
सबके सामने ही ढ़ाबे में जाकर खाने-की सलाह दे देते हैं।

मौत के अपने काम पर जब पृथ्वीलोक जाता हूँ
'भैंसे' पर मुझे देखकर पृथ्वीवासी भी हँसते हैं
और कार न होने के ताने कसते हैं। 

भैंसे पर बैठे-बैठे झटके बड़े रहे हैं
वायुमार्ग में भी अब ट्रैफिक बढ़ रहे हैं।
रफ्तार की इस दुनिया का मैं भैंसे से कैसे करूँगा पीछा।
आप कुछ समझ रहे हो या कुछ और दूँ शिक्षा।

और तो और, देखो रम्भा के पास है 'टोयटा'
और उर्वशी को है आपने 'एसेन्ट' दिया,
फिर मेरे साथ ये अन्याय क्यों किया? 

हे इन्द्रदेव। मेरे इस दु:ख को समझो और
चार पहिए की जगह चार पैरों वाला दिया है कह कर अब मुझे न बहलाओ,
और जल्दी से 'मर्सिडीज़' मुझे दिलाओ।
वरना मेरा इस्तीफा अपने साथही लेकर जाओ।
और मौत का ये काम अब किसी और से करवाओ। 

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